Cricket History - भारत का इंग्लैंड दौरा 1967

Updated: Sun, Feb 14 2021 23:24 IST
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साल 1967 में भारत का इंग्लैंड दौरा टीम के लिए बेहद खराब रहा। लगभग पिछले 10 सालों से भारत की स्थिति दयनीय थी और टीम को इस बीच कई हार का सामना करना पड़ा।

भारत ने एशिया के बाहर इस दौरान कुल 17 टेस्ट मैच खेले थे जिसमें सभी मैचों का परिणाम एक ही रहा - भारत की हार। अगर साल 1952 में ओवल के मैदान पर वर्षा से बाधित मैच को छोड़ दिया जाए तो भारत को अंग्रेजों की सरजमीं पर लगातार 12 हार का सामना करना पड़ा था।

तीन टेस्ट मुक़ाबलों में भारत को 6 विकेट से हार, पारी और 124 रनों से हार और 132 रनों की हार मिली थी। अन्य दौरों पर भारत को सिर्फ दो मैचों में जीत, 4 में हार और 9 मुकाबले ड्रॉ रहे।

भारत के दो खिलाड़ी - मंसूर अली खान पटौदी और चंदू बोरडे ही ऐसे थे जिन्होंने इंग्लैंड दौरे से पहले कोई फर्स्ट क्लास मैच खेला था। भारत को और गहरा झटका तब लगा जब तीन तेज गेंदबाज- रूसी सूरती, सुब्रता गुहा और सदानंद मोहोल बीच सीरीज में ही चोटिल हो गए।

पहला टेस्ट मैच हैडिंग्ले में हुआ जहां ज्योफ बॉयकोट ने अपने घरेलू मैदान पर 246 रनों की बेजोड़ पारी खेली। यह तब के जमाने में भारत और इंग्लैंड के बीच हुए सभी टेस्ट मैचों में किसी बल्लेबाज का अधिकतम स्कोर था। बॉयकोट ने तब करीब करीब साढ़े नौ घंटे से भी ज्यादा बल्लेबाजी की और कुल 555 गेदों का सामना किया। हैरान कि बात यह है कि दोहरा शतक लगाने के बावजूद उन्हें लॉर्डस के मैदान पर हुए दूसरे टेस्ट मैच से धीमी बल्लेबाजी के कारण टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

लॉर्डस टेस्ट के दौरान पहली बार 'पब्लिक एड्रेस सिस्टम' का इस्तेमाल किया गया जिससे समय-समय पर मैदान पर बैठे दर्शकों को स्कोर और मैच से जुड़ी अन्य जानकारी प्रदान की जाती थी। इस सुविधा के आने से पहले एक आदमी ब्लैकबोर्ड लेकर मैदान के चारों और चक्कर काटता था ताकि क्रिकेट प्रेमियों को स्कोर की जानकारी मिलती रहे। दूसरे मैदानों पर वहां का क्लब सेक्रेटरी हाथ में मेगाफोन लेकर टॉस, स्कोर व अन्य चीजों से दर्शकों को रूबरू कराता था।

एजबेस्टन के मैदान पर सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच से पहले भारत के तीनों तेज गेंदबाज घायल हो गए। बाद में फिर भारत की प्लेइंग इलेवन में 4 मुख्य स्पिनरों को जगह मिली जिसमें बिशेन सिंह बेदी, भागवत चंद्रशेखर, ईएस प्रसन्ना, श्रीनीवास वेंकेटराघवन को शामिल किया गया। यह एकमात्र टेस्ट मैच था जब इन चारों स्पिनरों ने एक साथ एक मैच में खेला था।

 

भारत के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। वेंकेटरमन सुब्रमनयम तेज गेंदबाजी करते लेकिन टीम को दूसरे छोड़ से उनका जोड़ीदार चाहिए था जो नई गेंद से बल्लेबाजों को परेशान कर सके। टीम के कप्तान मंसूर पटौदी ने रिजर्व विकेटकीपर बुद्धी कुंदरन से पूछा कि वो कैसी गेंदे फेंकते है। लेकिन मजेदार बात यह है कि खुद कुंदरन को भी इस बात की जानकारी नहीं थी। अगली सुबह भारत के लिए पटौदी और कुंदरन ने टेस्ट मैच में गेंदबाजी की शुरूआत करने आए।

उस दौरान भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज फारुख इंजिनियर ने इंग्लैंड क्रिकेट मैनेजमेंट से अपने प्रदर्शन के कारण खूब वाहवाही बटोरीं थी। हैम्पशायर, समरसेट और वार्कशायर ने फारूख को अपनी टीम में लेने की कोशिश की लेकिन बाद में इस विकेटकीपर ने लंकाशायर की टीम के साथ करार किया। उन्होंने लंकाशायर के लिए 1968 से लेकर 1976 तक खेला।

सीरीज का परिणाम 

  • पहला टेस्ट( लिड्स) - इंग्लैंड 6 विकेट से जीता।
  • दूसरा टेस्ट( लॉर्डस) - इंग्लैंड की टीम पारी और 124 रनों से जीती।
  • तीसरा टेस्ट (बिर्मिघम)  - इंग्लैंड 132 रनों से जीती।

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