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Cricket History - इंग्लैंड का भारत दौरा 1937-38

Cricket History - भारत का इंग्लैंड दौरा 1937-38 । इस दौरे पर इंग्लैंड की इस टीम ने "ऑल इंडिया साइड" की सभी टीमों के साथ मैच खेला। हालांकि इन सभी मैचों को कभी आधिकारिक टेस्ट मैच का दर्जा नहीं मिला।

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India vs England Cricket History
India vs England Cricket History (Image Source - Google)
Abhishek  Mukherjee
By Abhishek Mukherjee
Feb 06, 2021 • 03:08 PM

दूसरे विश्व युद्ध के कारण भारत ने 1936 से लेकर 1946 के बीच कोई टेस्ट मैच नहीं खेला। लेकिन इसी बीच इंग्लैंड की एक मजबूत टीम ने लियोनेल टेनिसन की अगुवाई में भारत का दौरा किया। उस टीम में कुल 13 सदस्य थे जो उस समय कहीं ना कहीं टेस्ट मैच खेल रहे थे।

Abhishek  Mukherjee
By Abhishek Mukherjee
February 06, 2021 • 03:08 PM

इस दौरे पर इंग्लैंड की इस टीम ने "ऑल इंडिया साइड" की सभी टीमों के साथ मैच खेला। हालांकि इन सभी मैचों को कभी आधिकारिक टेस्ट मैच का दर्जा नहीं मिला। इंग्लैंड के उन सभी खिलाड़ियों को दौरे पर कुछ ना कुछ बीमारी हुई और उनकी तबीयत नासाज रही लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इस दौरान टेस्ट सीरीज को 3-2 से अपने नाम किया।

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हालांकि इस हार के बावजूद इस दौरान भारत को एक सुपरस्टार मिला और वो कोई और नहीं बल्कि भारत के बेहतरीन ऑलराउंडर वीनू मांकड़ थे। मांकड़ को पहले टेस्ट मैच में खेलने का मौका नहीं खेला लेकिन दूसरे मैच से ही उन्होंने अपने प्रदर्शन से ढ़ेरों सुर्खियां बटोरीं।

दूसरे मैच की पहली पारी में उन्होंने 38 और दूसरी में 88 रन बनाए, इसके अलावा गेंदबाजी में 44 रन देकर 2 विकेट भी हासिल किया। तीसरे मैच में उन्होंने 55 रन बनाने के अलावा 49 रन देकर 4 विकेट भी चटकाए।

चौथे टेस्ट मैच में उन्होंने नाबाद 113 रन बनाने के अलावा 73 रन देकर 6 विकेट भी हासिल किए और पांचवे मैच में उन्होंने पहली पारी में शून्य और दूसरी पारी में 57 रन बनाने के अलावा गेंदाबाजी में 52 रन देकर 3 बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखाया।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत ही एक ऐसा देश था जहां क्रिकेट जारी रहा। इस दौरान विजय मर्चेन्ट और विजय हजारे ने कुछ बेहतरीन शतक जमाए और ढ़ेरों रन बटोरें।

युद्ध के समय इंग्लैंड के कई क्रिकेटर भारत आए और उन्होंने रणजी ट्रॉफी में हिस्सा लिया। उन सभी अंग्रेजी क्रिकेटरों में सबसे बड़ा नाम डेनिस कॉम्प्टन का था जिनकी पोस्टिंग महू में बतौर सर्जेंट-मेजर हुई। सीके नायडू ने कॉम्प्टन को होल्कर से खेलने का प्रस्ताव दिया। 1944/1945 के रणजी ट्रॉफी फाइनल में होल्कर को जीत के लिए 867 रनों की जरूरत थी। लक्ष्य का पीछा करने उतरी होल्कर की टीम एक समय 2 विकेट पर 12 रन बनाकर संघर्ष कर रही थी लेकिन कॉम्प्टन ने इसके बाद 249 रनों की पारी खेली। हालांकि उस मैच में होल्कर की टीम 492 रनों पर ऑलआउट हो गई।

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