किस्सा उस क्रिकेटर का जिसे Facebook क्विज के एक सवाल ने फर्स्ट क्लास क्रिकेटर 'बनाया' और पेंशन भी दिलाई
Vilas Godbole Mumbai Cricketer: सबसे पहले तो मुंबई के जिन विलास गोडबोले (इस समय उम्र लगभग 77 साल) की ये स्टोरी है, उनका संक्षेप परिचय : मुंबई से बाहर उन्हें ज्यादा लोग शायद नहीं जानते। किसी कोचिंग डिग्री के बिना

Vilas Godbole Mumbai Cricketer: सबसे पहले तो मुंबई के जिन विलास गोडबोले (इस समय उम्र लगभग 77 साल) की ये स्टोरी है, उनका संक्षेप परिचय : मुंबई से बाहर उन्हें ज्यादा लोग शायद नहीं जानते।
किसी कोचिंग डिग्री के बिना कई साल मुंबई जूनियर टीमों और मुंबई यूनिवर्सिटी के कोच रहे और कई टाइटल जीते। जूनियर और यूनिवर्सिटी स्तर पर संजय मांजरेकर, शिशिर हट्टंगडी, किरण मोरे और सूर्य कुमार यादव जैसे कई और मशहूर खिलाड़ी भी उनके ही प्रोडक्ट हैं। तब भी, कोचिंग से इसलिए हटाए गए क्योंकि उनके पास सही 'क्वालिफिकेशन' नहीं थी। उन कुछ कोच में से एक जिन्होंने क्रिकेट कोचिंग पर किताब भी लिखी।
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कोचिंग से दो साल के ब्रेक के दौरान ‘माई इनिंग्स इन मुंबई क्रिकेट (My Innings in Mumbai Cricket)’ लिखी। जिस 2017 के सीके नायडू फाइनल में उनके साथ मुंबई टीम ने टाइटल जीता था, उसमें सूर्य कुमार यादव भी थे (मुंबई के पहली पारी के 600 में 200 बनाए)। इस किताब के दिसंबर 2023 में रिलीज होने के वक्त SKY ने कहा था- 'वे एक आम कोच नहीं थे और शायद अकेले ऐसे कोच जिसने हमेशा चाहा कि उनकी टीम के सभी 15 खिलाड़ी टीम इंडिया के लिए खेलें।' पहली बार SKY को नेट्स पर बैटिंग करते देखा तो उस वक्त ही उन्होंने कह दिया था- 'तुम एक दिन इंडिया के लिए जरूर खेलोगे।'
इस रिलीज प्रोग्राम में सुनील गावस्कर, संजय मांजरेकर, संजय बांगर, राजू कुलकर्णी, नीलेश कुलकर्णी, शिशिर हट्टंगडी जैसे खिलाड़ियों से लेकर तब के बीसीसीआई ट्रेजरार आशीष शेलार और अनुभवी क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर प्रोफेसर रत्नाकर शेट्टी की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि उन्हें मुंबई क्रिकेट में कितना सम्मान मिलता है? कोचिंग में 50 साल का रिकॉर्ड है उनके नाम। एक परिचय और भी है और वह है खिलाड़ी का। एक समय सुनील गावस्कर के साथ दादर यूनियन टीम में ओपनिंग पार्टनर थे। 1965 में ब्रेबोर्न स्टेडियम में सीलोन (अब श्रीलंका) के विरुद्ध एक मैच भी खेला था।
इस समय विलास गोडबोले को याद करने की वजह? एक नई खबर है इसकी वजह। कुछ दिन पहले, वानखेड़े स्टेडियम के 50 साल पूरे होने के मौके पर मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने जिन कुछ ख़ास हस्तियों को सम्मानित किया उनमें से एक नाम विलास गोडबोले का भी था। 10 लाख रूपये का अवार्ड दिया उन्हें ये कहकर कि वानखेड़े स्टेडियम के सबसे पहले (1974-75) सीजन की उस एमसीए मैनेजमेंट कमेटी (जिसने स्टेडियम में टेस्ट आयोजित किया) के अकेले जीवित सदस्य हैं इस समय। 10 लाख रुपये का ही इनाम ही, उस सीजन में, वानखेड़े में खेली पहली बॉम्बे रणजी ट्रॉफी टीम के हर जीवित खिलाड़ी को दिया।
ये घोषणा सनसनीखेज तब बनी जब विलास गोडबोले ने इस अवार्ड के लिए एमसीए को धन्यवाद तो दिया पर 10 लाख रुपये लेने से इनकार कर दिया। वजह? वे कहते हैं कि वानखेड़े में टेस्ट हो सका, इसका श्रेय वे अकेले नहीं ले सकते। कई और भी थे जिनकी मेहनत से ये स्टेडियम बना और कई मुश्किलों के बावजूद यहां पहला टेस्ट खेले। आगे लिखा- ‘मैं उस मैनेजमेंट कमेटी का अकेला जीवित मेंबर हूं, इसका मतलब ये नहीं है कि मैं अकेला इसका हकदार हूं।' इसके साथ ही उन्होंने एक बात और लिख दी- 'अगर मेरा सम्मान करना है तो मुझे पेंशन के एरियर बिना और देरी, दे दो।'
ये पेंशन का क्या मसला है जिसकी अब तक तो कोई चर्चा ही न थी? फाइलों में चर्चा तो थी पर अब ऐसा लिखकर विलास गोडबोले ने इसे एक नया रंग दे दिया। यही है वह स्टोरी जिसका इस बार जिक्र कर रहे हैं और आप जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे।
ऊपर विलास गोडबोले का जो परिचय लिखा उसमें कहीं ये नहीं लिखा कि वे फर्स्ट क्लास क्रिकेट भी खेले। किसी और ने क्या लिखना था, उन्हें खुद को ये अंदाजा नहीं था कि वे फर्स्ट क्लास क्रिकेटर हैं। संयोग से यही गलती मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के ऑफिस में होती रही और मुंबई के फर्स्ट क्लास क्रिकेटर की लिस्ट में उनका नाम नहीं था। जिस मैच से ये स्टोरी बनी वह 1964-65 में ब्रेबोर्न स्टेडियम में भारत टूर पर आई सीलोन टीम के विरुद्ध था मुंबई के लिए। 8-10 जनवरी 1965 को खेला ये मैच था तो फर्स्ट क्लास, पर ये फैक्ट हर जगह नजरअंदाज हो गया।
इसका सबसे बड़ा नुक्सान ये हुआ कि जब मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने अपने फर्स्ट क्लास क्रिकेटरों के लिए पेंशन स्कीम शुरू की (2006 में) तो लिस्ट में विलास गोडबोले का नाम नहीं था। तब 10 हजार रुपये हर महीने की थी पेंशन जो 2014 से 20 हजार रुपये हो गई। विलास गोडबोले की तरफ से भी कोई रिएक्शन नहीं हुआ क्योंकि वे तो खुद ही भूल चुके थे कि कोई फर्स्ट क्लास मैच खेले हैं। तो फिर पता कैसे चला?
जैसे कभी-कभी केबीसी में भी क्रिकेट के सवाल पूछे जाते हैं, वैसे ही और भी कुछ क्विज हैं। इनमें से एक बड़ी चर्चित, मुंबई के जर्नलिस्ट क्लेटन की फेसबुक पर वीकली क्विज है। 2017 में ऐसी ही एक क्विज में उन्होंने एक फोटो पोस्ट की जिसमें 4 भारतीय फर्स्ट क्लास क्रिकेटर थे और किन्हीं 3 के नाम बताने थे। ऐसे क्रिकेट प्रेमी भी हैं जिन्होंने 3 क्या, सभी 4 नाम सही लिख दिए। जब फेसबुक पर जवाब के ये 4 नाम पोस्ट हुए तो इनमें एक नाम विलास गोडबोले का भी था। संयोग से इस जवाब वाले पोस्ट को, विलास गोडबोले के बेटों केदार और कौशिक ने भी पढ़ा। वे भी जानते थे कि उनके पिता फर्स्ट क्लास क्रिकेट 'नहीं' खेले पर इस जवाब के मुताबिक़ तो वे फर्स्ट क्लास क्रिकेटर थे। बेटों ने ये पोस्ट अपने पिता को दिखाई तो ये मसला उठा कि गोडबोले ने क्यों खुद को कभी फर्स्ट क्लास क्रिकेटर नहीं गिना?
जवाब ये है कि चूंकि वे रणजी ट्रॉफी नहीं खेले इसलिए वे ये मानते रहे कि फर्स्ट क्लास क्रिकेटर नहीं हैं। यही एमसीए में हुआ और मुंबई के फर्स्ट क्लास क्रिकेटरों की लिस्ट में उनका नाम नहीं था। नतीजा- 2006 में पेंशन के हकदार की लिस्ट में नाम न आया। यहां से लड़ाई शुरू हुई इस गलती को सुधारने और एसोसिएशन से पेंशन लेने की। विलास गोडबोले ने एमसीए को लिखा तो एसोसिएशन के अधिकारियों ने 'उस मैच के स्टेटस' के सवाल पर खुद को बचाने के लिए. बीसीसीआई से पूछ लिया कि क्या वह 8-10 जनवरी, 1965 का सीलोन के विरुद्ध मैच, फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच था? बीसीसीआई ने एक स्टेटिस्टीशियन से जांच के बाद सर्टिफिकेट दे दिया कि ये फर्स्ट क्लास मैच था। तो इस तरह 2018 में एमसीए ने पेंशन देना शुरू कर दिया। एरियर की किसी ने बात नहीं की। पेंशन तो 2006 से मिलनी चाहिए थी और गोडबोले इन्हीं एरियर का इंतजार कर रहे हैं जो 15-20 लाख रुपये तक हो सकते हैं।
वे कहते हैं कि जैसे और क्रिकेटरों को पिछले सालों की भी पेंशन दी, उन्हें भी दो। इस पर एमसीए चुप है और अब इस 10 लाख रुपये वाला अवार्ड न लेने वाली चिट्ठी में भी गोडबोले ने एमसीए को फिर से लिख दिया- अगर मेरा सम्मान करना है तो मुझे पेंशन के एरियर बिना और देरी, दे दो।
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-चरनपाल सिंह सोबती