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50 साल पहले 1.84 करोड़ रुपये में एक नया स्टेडियम बना और मुंबई क्रिकेट में बहुत कुछ बदल गया  

Important Facts About Wankhede Stadium: इन दिनों, मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रोग्राम चल रहे हैं जिसमें मुंबई के नए-पुराने क्रिकेटर सब चर्चा में रहेंगे। भारतीय क्रिकेट में वानखेड़े...

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50 साल पहले 1.84 करोड़ रुपये में एक नया स्टेडियम बना और मुंबई क्रिकेट में बहुत कुछ बदल गया  
50 साल पहले 1.84 करोड़ रुपये में एक नया स्टेडियम बना और मुंबई क्रिकेट में बहुत कुछ बदल गया   (Image Source: Twitter)
Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
Jan 20, 2025 • 08:14 AM

Important Facts About Wankhede Stadium: इन दिनों, मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रोग्राम चल रहे हैं जिसमें मुंबई के नए-पुराने क्रिकेटर सब चर्चा में रहेंगे। भारतीय क्रिकेट में वानखेड़े स्टेडियम के जिक्र का मतलब है एक पूरा इतिहास जो ग्राउंड पर और ग्राउंड से बाहर की घटनाओं से भरा है। एक कॉफी टेबल बुक या एक विशेष डाक टिकट रिलीज होने से वानखेड़े के अतीत का कुछ पता नहीं चलता। 

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
January 20, 2025 • 08:14 AM

वानखेड़े स्टेडियम और मरीन ड्राइव का ऊंचाई से लिया फोटो देखिए तो बहुत संभव है इसमें एक और क्रिकेट स्टेडियम भी दिखाई दे। बिलकुल करीब है क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया का ऐतिहासिक ब्रेबोर्न स्टडियम। यही वह स्टेडियम है जहां, वानखेड़े स्टेडियम बनने से पहले, मुंबई के सभी मैच खेले जाते थे। भले ही मुंबई में आयोजित पहला टेस्ट 1933-34 में जिमखाना ग्राउंड में खेले पर जिस स्टेडियम को सबसे पहले मुंबई क्रिकेट के साथ जोड़ा गया वह ब्रेबोर्न स्टेडियम था। 

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ये आज भी है और इतना बेहतर कि मानो इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए तैयार हो। इसीलिए वानखेड़े स्टेडियम के 50 साल के जश्न की स्टोरी में आज के क्रिकेट प्रेमियों के लिए ये जानना जरूरी है कि आखिरकार ब्रेबोर्न स्टेडियम के होते हुए, उसके बिलकुल करीब ही एक और नया स्टेडियम बनाने की क्या जरूरत थी? किसी भी स्टेडियम से इंटरनेशनल क्रिकेट का आयोजन छीनने की सबसे बेहतरीन और रोमांचक स्टोरी है ये।  

इतिहास गवाह है इस बात का कि एक साम्राज्य के पतन से ही दूसरे साम्राज्य का जन्म होता है। शायद यही मुंबई की इस स्टेडियम स्टोरी का निचोड़ है। ब्रेबोर्न स्टेडियम है क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) का और बीसीसीआई से मिले अपने हिस्से के मैचों का आयोजन, बॉम्बे क्रिकेट एसोसिएशन (अब : एमसीए) करती थी ब्रेबोर्न में। आपसी तय शर्तों के अनुसार, ऐसे हर मैच के टिकट बीसीए को मिलते थे। बदलते समय के अनुसार, टिकट की जरूरत बढ़ी और इसी जरूरत से वह टकराव शुरू हुआ जिसने एसोसिएशन के अपना ही नया स्टेडियम बनाने की नींव रखी। 

ये सब एक दिन में नहीं हुआ। टिकट का टकराव कई साल चला। 1973 में यहां इंग्लैंड के टेस्ट के बाद, इस मुद्दे पर बीसीए और सीसीआई के बीच टकराव शायद इस हालत में आ गए थे कि बीसीए ने मान लिया की ये झगड़ा खत्म करने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि अपना स्टेडियम बनाओ। तब बीसीए प्रेजिडेंट थे एसके वानखेड़े और वे साथ-साथ पॉलिटिशियन भी थे। उनके और सीसीआई के विजय मर्चेंट के बीच टकराव ने ही इस नए स्टेडियम की नींव रखी थी। अगर किसी एक व्यक्ति को, एक इंटरनेशनल स्तर के स्टेडियम की मौजूदगी में, उसके लगभग तय 'मर्डर' के साथ, उसी के बिलकुल करीब एक और स्टेडियम बनाने के फैसले का श्रेय एक व्यक्ति को देना हो तो वह यही एसके वानखेड़े थे। इसीलिए एसोसिएशन ने स्टेडियम बनने पर, उसे मुंबई के किसी दिग्गज क्रिकेटर का नाम न देकर इन्हीं एसके वानखेड़े का नाम दे दिया। 

उनका फैसला, उनकी जिद्द और इसीलिए अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर न सिर्फ प्राइम लोकेशन पर ही नए स्टेडियम के लिए जमीन अलॉट कराई, हर सरकारी क्लीयरेंस का भी इंतजाम किया। रिकॉर्ड समय में बन गया था नया स्टेडियम- इतनी तेजी से तो आज भी स्टेडियम नहीं बनते। 1975 में तो भारत ने यहां वेस्टइंडीज के विरुद्ध सीरीज का आख़िरी टेस्ट भी खेल लिया। 

जो टकराव मिल रहे टिकट की गिनती से शुरू हुआ उसमें धीरे-धीरे और भी मुद्दे जुड़ते गए और तब तो टेस्ट खेलने से होने वाले मुनाफे के बंटवारे पर भी बहस शुरू हो गई। इस पर सीसीआई की दलील थी स्टेडियम को, इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए तैयार रखने का खर्च तो कोई उनके साथ नहीं बांटता तो ऐसे में वे मैच का मुनाफ़ा क्यों बांटें? ऐसा नहीं कि इस स्टोरी में सीसीआई की तरफ से सब सही हुआ। उन पर भी ‘अहंकार' का बराबर आरोप है और टिकट की जरूरत को सही तरीके से समझ, कोई रास्ता निकालने की जगह, शायद टकराव को सही रास्ता समझा। आखिरकार कोई बात तो थी, तभी तो नौबत यहां तक आ गई थी कि बीसीए ने कह दिया था कि वे अपने हिस्से के टेस्ट ब्रेबोर्न से हटा लेंगे, भले ही शिवाजी पार्क में अस्थायी स्टैंड लगाकर टेस्ट खेलना पड़े। 

बीसीए ने अपने फैसले को कभी गलत नहीं माना और एसके वानखेड़े ने साफ़ कहा- 'हम एक ऐसे किरायेदार की तरह हैं जो अब अपना घर बनाना चाहता है। हर मैच पर दोहरे कंट्रोल से बड़ी मुश्किलें आ रही हैं और नए स्टेडियम से क्रिकेट को फायदा होगा। हम किसी को चोट या नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते।' 

कुछ बड़े मजेदार और हैरान करने वाले फैक्ट और भी हैं। देखिए :

* स्टेडियम का डिज़ाइन मुंबई के किसी दिग्गज आर्किटेक्ट ने नहीं, सिर्फ 28 साल के, आर्किटेक्चर कॉलेज पासआउट शशि प्रभु ने तैयार किया था। 

* इसे 1974 में सिर्फ 1.84 करोड़ रुपये की लागत से बना लिया था।

* क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले स्टेडियम का कौन सा हिस्सा बनाया? सबसे पहले क्लब हाउस बना क्योंकि बीसीए को इसकी सख्त जरूरत थी। एसोसिएशन ऑफिस के नाम पर, उनके पास ब्रेबोर्न स्टेडियम में सिर्फ एक छोटा सा कमरा था। बड़े ऑफिस की उन्हें सख्त जरूरत थी। 

*  जब स्टेडियम के लिए जमीन मिली तो विशषज्ञों ने कहा था कि ये जमीन क्रिकेट के लिए नहीं, हॉकी के लिए सही है। चारों तरफ बिल्डिंग और रेलवे ट्रैक से घिरे होने के बावजूद,  समुद्र के करीब होने से ताज़ी हवा आ रही थी।

आज ये स्टेडियम एक ऐतिहासिक सफर पूरा कर 50 साल के जश्न मना रहा है। 

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- चरनपाल सिंह सोबती

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