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2006 में भारत में, ICC चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के 3 क्रिकेटरों ने एक क्रिमिनल से की थी मुलाकात  

Champions Trophy 2006: चैंपियंस ट्रॉफी की इस स्टोरी में क्राइम, आतंकवाद, बॉलीवुड, बेस्ट सेलर उपन्यास सब हैं और इनके साथ क्रिकेट तो है ही। क्रिकेट तक पहुंचने से पहले दो अलग-अलग छोटी स्टोरी को जानना जरूरी है।  पहली स्टोरी...

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2006 में भारत में, ICC चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के 3 क्रिकेटरों ने एक क्रिमिनल से की थी
2006 में भारत में, ICC चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के 3 क्रिकेटरों ने एक क्रिमिनल से की थी (Image Source: Twitter)
Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
Feb 21, 2025 • 01:49 PM

Champions Trophy 2006: चैंपियंस ट्रॉफी की इस स्टोरी में क्राइम, आतंकवाद, बॉलीवुड, बेस्ट सेलर उपन्यास सब हैं और इनके साथ क्रिकेट तो है ही। क्रिकेट तक पहुंचने से पहले दो अलग-अलग छोटी स्टोरी को जानना जरूरी है। 

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
February 21, 2025 • 01:49 PM

पहली स्टोरी ग्रेगरी डेविड रॉबर्ट्स (Gregory David Roberts) की है जो किसी क्रिकेटर का नहीं, एक मशहूर ऑस्ट्रेलियाई क्रिमिनल का नाम है। वहां हेरोइन बेचने के माफिया, लूटमार और बैंक लूटने जैसे बड़े क्राइम किए। सजा मिली और पेंट्रीज जेल में बंद थे। 1980 में जेल से भाग निकले और एक देश से दूसरे देश भागते-भागते भारत आ गए और मुंबई के एक स्लम में नाम बदल कर टिक गए। इस दौर में, खाने का पैसा कमाने के लिए कई बॉलीवुड फिल्म में एक्स्ट्रा का काम किया। 

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1990 में फ्रैंकफर्ट में दाखिल होने की कोशिश में पकड़े गए और वापस आस्ट्रेलिया भेज दिया। फिर से जेल में- इस बार 6 साल के लिए। फिर से जेल से भाग गए। इस बार जब जेल में थे तो एक उपन्यास लिखना शुरू किया जिसका नाम रखा 'शांताराम (Shantaram)'। दो बार जेल स्टाफ ने उपन्यास की मैन्युस्क्रिप्ट फाड़ दी पर वे बाज न आए और फिर से लिखा। जैसा कि उपन्यास के टाइटल से स्पष्ट है- इसमें स्टोरी भारत में बिताए सालों के दौर की। 

खैर जेल की सजा पूरी की और छूटने के बाद जो पहला अच्छा काम किया वह था इस उपन्यास को पब्लिश करवाना और ये तब से 'बेस्ट सेलर' लिस्ट में है। ये शांताराम नाम उन्हें मुंबई में स्लम में बने एक दोस्त की मां ने सुझाया था जिसका आम भाषा में मतलब है 'शांति का दूत'। उसके बाद रॉबर्ट्स मेलबर्न, जर्मनी और फ्रांस में भी रहे पर कहीं दिल न लगा और फिर से मुंबई लौट आए। इस बार चैरिटी में जुट गए और गरीबों की हेल्थ केयर में बड़ी मदद की। तब तक उपन्यास बेस्ट सेलर होने से खूब पैसा कमा लिया था। कई अवार्ड मिले और कई ग्लोबल प्रोजेक्ट से जुड़ गए। और भी किताबें लिखीं। 

इस उपन्यास पर फिल्म बनी जिसकी स्क्रिप्ट उन्होंने खुद लिखी- फिल्म एप्पल टीवी+ (Apple TV+) ने बनाई और हीरो थे चार्ली हन्नम (Charlie Hunnam)। इस फिल्म से जुड़ी दो ख़ास बातें :

- स्टोरी मुंबई की है पर वास्तव में इसकी ज्यादातर शूटिंग भोपाल में हुई। 

- रॉबर्टस की बड़ी चाह थी कि फिल्म भारत में भी लोकप्रिय हो और वे इसे बॉलीवुड प्रोजेक्ट बनाना चाहते थे। सब तय हो गया और मीरा नायर (Mira Nair) को इसे डायरेक्ट करना था और अमिताभ बच्चन को खदर भाई के रोल के लिए साइन भी कर लिया था पर ये फिल्म न बनी। 

दूसरी स्टोरी मुंबई में कोलाबा के मशहूर लियोपोल्ड कैफे एंड बार (Leopold Cafe and Bar) की है (कोलाबा पुलिस स्टेशन के सामने है ये)। इसे पूरी दुनिया में चर्चा तब मिली जब 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में इस पर भी अटैक किया गया और यहां मौजूद सभी लोग मरे थे। यह कैफे विदेशी टूरिस्ट के बीच ख़ास तौर पर बड़ा लोकप्रिय है और उस हमले के बाद टूरिज्म की लिस्ट में आ गया। इस कैफे ने चली गोलियों और ग्रेनेड के फटने के कुछ निशान अभी तक रखे हुए हैं। अब इस कैफे को रॉबर्ट्स से जोड़ते हैं। वे हर शाम यहां एक तय टेबल पर बैठते थे और अगर उस हमले के वक्त, उन्हें फ्लाइट न लेनी होती तो यहीं मिलते। इस कैफे का, उनके सिर्फ शांताराम उपन्यास में ही नहीं, उससे अगली किताब (जिसे इसका सीक्वल भी कह सकते हैं) 'द माउंटेन शैडो (The Mountain Shadow) में भी खूब जिक्र है। 

ये खूब मशहूर हुआ कि वे हर रोज यहां आते हैं। उनके उपन्यास को पढ़ने वाले भी, उनसे मिलने की चाह में, यहां आने लगे। ये शायद भारत का अकेला कैफे है (जो कैफ़े खुद बुक स्टोर के अंदर हैं उन्हें नहीं गिन रहे) जहां सालों से काउंटर पर सिर्फ एक किताब भी बिक रही है- और कोई नहीं यही शांताराम उपन्यास। किताब खरीदो और लेखक के ऑटोग्राफ लो। 

अब आते हैं इन दोनों स्टोरी के क्रिकेट और ख़ास तौर पर चैंपियंस ट्रॉफी कनेक्शन पर। ये शांताराम उपन्यास पूरी दुनिया में कई भाषाओँ में ट्रांसलेट हुआ और खूब बिका। आजकल के क्रिकेटर किताबें पढ़ने के लिए मशहूर नहीं हैं (शायद उनके पास फुर्सत भी नहीं है) पर ऑस्ट्रेलिया टीम के तीन क्रिकेटरों माइकल हसी, एडम गिलक्रिस्ट और डेमियन मार्टिन ने भी इसे पढ़ा। जब 2006 में ऑस्ट्रेलियाई टीम चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने के लिए भारत आई तो इन तीनों क्रिकेटरों को ये एहसास था कि वे उस मुंबई शहर में हैं जिसकी स्टोरी है 'शांताराम' उपन्यास में। 

तब आज जैसी सख्ती नहीं थी और क्रिकेटर अकेले भी शहर घूमने निकल जाते थे। कोलाबा के करीब था वह होटल जहां ऑस्ट्रेलिया की टीम ठहरी थी। एक शाम एडम गिलक्रिस्ट अकेले घूमते हुए कोलाबा की तरफ निकल गए और वहां उनकी नजर लियोपोल्ड कैफे पर पड़ी। उन्हें फौरन 'शांताराम' उपन्यास याद आ गया और मालूम था कि इस नाम के कैफे का उपन्यास में कई जगह जिक्र है। इसी कैफे में बैठकर, उपन्यास का हीरो अपने क्राइम प्लान बनाता था। अपनी इस 'डिस्कवरी' पर गिलक्रिस्ट इतने खुश थे कि फ़ौरन होटल लौट गए- हसी और मार्टिन को बुलाने। 

तीनों उसी रात कैफे में आ गए। तीनों ड्रिंक कर रहे थे और उपन्यास की स्टोरी पर इस तरह से बातें कर रहे थे मानो हीरो साथ की टेबल पर बैठा किसी क्राइम का प्लाट बना रहा हो। कैफ़े के मालिक के कान में भी पड़ीं ये बातें और उन्होंने  गिलक्रिस्ट को पहचान भी लिया। बस फिर क्या था उनके साथ भी 'शांताराम' के और किस्से शुरू हो गए। उनके जोश को देख, कैफे के मालिक ने प्रपोज़ किया कि अगर क्रिकेटर मिलना चाहें तो वे रॉबर्ट्स को बुलाने की कोशिश कर सकते हैं। इससे बेहतर और क्या हो सकता था?

रॉबर्ट्स आ गए और उसके बाद कई घंटे निकल गए शांताराम की बातों में। बाद में गिलक्रिस्ट और हसी, दोनों ने अपनी-अपनी ऑटोबायोग्राफी में उस शाम का जिक्र किया। चैंपियंस ट्रॉफी की बैकग्राउंड पर अनोखी स्टोरी है ये। 

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- चरनपाल सिंह सोबती

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