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2002 चैंपियंस ट्रॉफी ने प्लेयर पावर का वह अनोखा नजारा देखा था जिसके बारे में आज सोच भी नहीं सकते 

आज टीम इंडिया के सीनियर क्रिकेटर भी, बीसीसीआई की किसी भी पॉलिसी/निर्देश को मानने से इनकार/विरोध नहीं करते। वजह- बीसीसीआई के पास आईपीएल है और कोई खिलाड़ी नहीं चाहेगा कि उसे आईपीएल के एक भी सीजन में 'न खेलने' की...

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2002 चैंपियंस ट्रॉफी ने प्लेयर पावर का वह अनोखा नजारा देखा था जिसके बारे में आज सोच भी नहीं सकते 
2002 चैंपियंस ट्रॉफी ने प्लेयर पावर का वह अनोखा नजारा देखा था जिसके बारे में आज सोच भी नहीं सकते  (Image Source: Twitter)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Feb 19, 2025 • 08:53 AM

आज टीम इंडिया के सीनियर क्रिकेटर भी, बीसीसीआई की किसी भी पॉलिसी/निर्देश को मानने से इनकार/विरोध नहीं करते। वजह- बीसीसीआई के पास आईपीएल है और कोई खिलाड़ी नहीं चाहेगा कि उसे आईपीएल के एक भी सीजन में 'न खेलने' की सजा मिले। इसके उलट 2002 चैंपियंस ट्रॉफी ने इसी भारत में, प्लेयर पॉवर का ऐसा अनोखा नजारा देखा गया था कि बीसीसीआई ने सिलेक्टर्स को कह दिया था कि टीम इंडिया की 'सेकंड इलेवन' चुनने की तैयारी करें और खिलाड़ी शॉर्टलिस्ट भी हो गए थे। क्या हुआ था तब और ऐसी नौबत क्यों आई?

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
February 19, 2025 • 08:53 AM

12 सितंबर को चैंपियंस ट्रॉफी का पहला मैच था कोलंबो में और इससे 20 दिन पहले तक ये लगभग तय था कि टीम इंडिया के ज्यादातर खिलाड़ी, जिनमें सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली भी थे, चैंपियंस ट्रॉफी में नहीं खेलेंगे। वजह? खिलाड़ियों ने ख़ास चैंपियंस ट्रॉफी के लिए बनाए, बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। 20 अगस्त को सिलेक्टर्स को बंगलौर में मीटिंग का आर्डर हुआ ताकि टूर्नामेंट के लिए 14 खिलाड़ियों की नई टीम चुनें। सिलेक्टर्स ने समझदारी दिखाकर नई टीम नहीं चुनी पर टूर्नामेट के लिए संभावित खिलाड़ियों का पूल 14 से बढ़ाकर 25 कर दिया।  

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ऐसा क्या था इस कॉन्ट्रैक्ट में कि नौबत यहां तक पहुंच गई थी? असल में कॉन्ट्रैक्ट आईसीसी का था जिसे बीसीसीआई ने मान लिया और आईसीसी ने हर खेलने वाली टीम के बोर्ड से कहा था, वही खिलाड़ी खेलने भेजें जो कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करें। विवाद था कॉन्ट्रैक्ट में लिखे एम्बुश मार्किटिंग क्लॉज (Ambush Marketing Clause) पर। क्या लिखा था इसमें? इस में लिखा था कि चैंपियंस ट्रॉफी के ऑफिशियल स्पांसर के साथ टकराव वाले किसी प्रॉडक्ट के लिए, खिलाड़ी टूर्नामेंट शुरू होने से 30 दिन पहले से टूर्नामेंट के 30 दिन बाद तक अपने उसी प्रॉडक्ट के व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट के बावजूद, अपने स्पांसर के प्रॉडक्ट के एड/प्रमोशन नहीं करेंगे। इतना ही नहीं, आईसीसी स्पांसर टूर्नामेंट के 6 महीने बाद तक अपने प्रॉडक्ट के प्रमोशन में, इन खिलाड़ियों की, टूर्नामेंट के दौरान की पिक्चर, का इस्तेमाल कर सकते थे।आईसीसी ने ये शर्त साथ ही अगले वनडे वर्ल्ड कप पर भी लगा दी थी पर चैंपियंस ट्रॉफी से ही झगड़ा शुरू हो गया। 

मजे की बात ये कि इस झगड़े के दौरान टीम इंडिया इंग्लैंड में सीरीज खेल रही थी और हर स्टेटमेंट इंग्लैंड से रिलीज हो रही थी।खिलाड़ियों का ध्यान टेस्ट सीरीज से हटकर, चैंपियंस ट्रॉफी के इस झगड़े पर था। खिलाड़ियों ने कहा वे अपने कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को तोड़ेंगे तो उनके पैसे कटेंगे- इस नुकसान को कौन भरेगा? और तो और, टीम इंडिया के इस मिजाज को देखकर और भी कुछ देश के खिलाड़ियों (ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका,श्रीलंका और वेस्टइंडीज भी) ने इन शर्त वाले कॉन्ट्रैक्ट को मानने से इनकार कर दिया। किसी भी खिलाड़ी ने चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने से इनकार नहीं किया- बस इस नए कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर के लिए तैयार नहीं थे। उधर आईसीसी ने कहा- कोई खिलाड़ी बिना कॉन्ट्रैक्ट को माने, चैंपियंस ट्रॉफी में नहीं खेल सकता। 

तब बीसीसीआई चीफ जगमोहन डालमिया थे और उनकी पूरी कोशिश थी कि टकराव टले। वे शुरू में बड़े सख्त थे और बोले- 'ये फैसला बोर्ड ने लिया है और चाहे कुछ भी हो जाए, भारत डिफॉल्ट नहीं कर सकता।' बाद में उन्होंने प्रपोजल दिया- चैंपियंस ट्रॉफी में इसी कॉन्ट्रैक्ट के साथ खेल लो, वर्ल्ड कप तक इस झगड़े को सुलझा लेंगे। खिलाड़ी न माने। खिलाड़ियों ने तो इसके उलट बीसीसीआई पर आरोप लगाया कि दो साल पहले जब आईसीसी को इस कॉन्ट्रैक्ट पर मंजूरी दी तो उनसे सलाह क्यों नहीं की थी? चूंकि बीसीसीआई ने इस नई शर्त वाले कॉन्ट्रैक्ट के साथ पार्टिसिपेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर दिए थे, इसलिए अब खिलाड़ियों से हस्ताक्षर लेना उनकी जिम्मेदारी बन गया था। इस समय तक ये खबर भी लीक हो गई कि ये कॉन्ट्रैक्ट 2007 तक तो चलेगा ही। 

उधर आईसीसी ने भी जिद्द पकड़ ली कि कोई रियायत नहीं देंगे। सब जानते थे कि इस झगड़े में किसी का भी फायदा नहीं। दूसरी तरफ आईसीसी के बड़े-बड़े स्पांसर धमकी देने लगे कि अगर बड़े खिलाड़ी खेलने न आए तो वे भी स्पांसर कॉन्ट्रैक्ट में तय रकम नहीं देंगे। रास्ता निकालने के लिए आईसीसी के सीईओ मैल्कम स्पीड एकदम भारत आ गए। इधर टीम इंडिया के व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट वाली कंपनियां भी नहीं चाहती थीं कि ये खिलाड़ी चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने ही न जाएं। तो चारों तरफ किसी 'एग्रीमेंट' के लिए माहौल बनने लगा। 

29 अगस्त को भारतीय खिलाड़ियों की तरफ से स्टेटमेंट आई कि विवाद खत्म करने के लिए वे बीसीसीआई को एक नया प्रपोजल भेज रहे हैं। पहली बार खिलाड़ियों के प्रतिनिधि के तौर पर रवि शास्त्री खुल कर सामने आए। उनकी स्टेटमेंट थी- इस बार कुछ रियायत के साथ खेलेंगे पर इस झगडे को वर्ल्ड कप से पहले खत्म करने का आश्वासन चाहिए- 'आईसीसी और बीसीसीआई ने खिलाड़ियों के अधिकारों को न सिर्फ हल्के में लिया है, कई बार इसका गलत इस्तेमाल भी किया है। ये प्रपोजल सिर्फ चैंपियंस ट्रॉफी के लिए होगा।'

तो क्या था खिलाड़ियों का प्रपोजल? खिलाड़ी ऑफिशियल टूर्नामेंट स्पांसर के साथ कंपटीशन करने वाली कंपनियों के प्रॉडक्ट प्रमोट नहीं करेंगे (हालांकि कई के पास ऐसे व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट हैं) पर ये शर्त सिर्फ चैंपियंस ट्रॉफी खेलने के 18 दिन के लिए होगी, उससे पहले और उसके बाद के दिनों का कोई प्रतिबंध नहीं। इस बीच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेटर अपने बोर्ड के दबाव में कॉन्ट्रैक्ट पर राजी हो गए। बीसीसीआई सेक्रेटरी निरंजन शाह ने हमेशा की तरह जल्दबाजी दिखाई और दुबई में आईसीसी वर्किंग बोर्ड की मीटिंग में कह दिया- 'खिलाड़ी हमारे कंट्रोल में नहीं रहे...हम कुछ नहीं कर सकते।' 

उधर मेजबान श्रीलंका के खिलाड़ी तो और भी तेज निकले। उनके खिलाड़ियों ने कहा कॉन्ट्रैक्ट मान लेंगे पर बदले में उन्होंने बोर्ड को टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए मिलनी वाली गारंटी मनी में से 30 प्रतिशत हिस्सा मांग लिया। 

चैंपियंस ट्रॉफी नजदीक आ रही थी और रास्ता निकलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। ऐसे में जगमोहन डालमिया ने एक और पहल की और कहा- अब सब बयानबाजी बंद करें और संकट टालने के लिए आपस में बात करें। आईसीसी ने इस पर जोर देकर कहा- वह पीछे नहीं हटेगी और ओलंपिक, कॉमनवेल्थ गेम्स और फुटबॉल वर्ल्ड कप में भी यही शर्त लागू होने की दलील दे दी पर अब तक वे भी जान गए थे कि टूर्नामेंट को बचाना है तो 'प्लेयर पावर' से टकराव छोड़ना होगा। उनके अपने स्पांसर, बड़े खिलाड़ियों के न खेलने पर, आगे के सालों के लिए कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने की धमकी देने लगे। 

विश्वास कीजिए आज का 'पावरफुल' बीसीसीआई, तब खुद खिलाड़ियों को राजी न कर सका था। आईसीसी ने सीधे सौरव गांगुली की टीम से बात की। मैल्कम स्पीड दो दिन लंदन में. भारतीय खिलाड़ियों से सीधे बात करते रहे। इसी में वे 'कुछ' रियायत देने की बात मान गए। ये भी मान गए कि एक क्रिकेट वर्ल्ड कप कॉन्ट्रैक्ट कमीशन बनाएंगे जो वर्ल्ड कप से पहले विवाद के सभी मुद्दों पर बात कर, उन्हें सुलझाएगा। इस कमीशन में कौन-कौन थे और इस कमीशन ने क्या किया, ये एक अलग स्टोरी है पर 6 सितंबर को आईसीसी ने कहा- भारतीय टीम के साथ विवाद सुलझ गया। बीसीसीआई सेक्रेटरी निरंजन शाह की स्टेटमेंट थी- हमें ख़बरों से पता चला है कि खिलाड़ी और आईसीसी एक समझौते पर पहुंच गए हैं।' है न कमाल!

समझौते की तीन ख़ास बातें थीं :
1. खिलाड़ी टूर्नामेंट के 18 दिन बाद तक के लिए, अपने व्यक्तिगत स्पांसर को प्रमोट न करने पर राजी हो गए। 
2. आईसीसी ने खिलाड़ियों की पिक्चर के कमर्शियल इस्तेमाल पर रोक को मंजूरी दे दी। 
3. इन रियायत के बदले आईसीसी, बीसीसीआई से कोई मुआवजा नहीं मांगेगा। 

चैंपियंस ट्रॉफी की बदौलत जो हुआ वह अनोखा और अविश्वसनीय था। टीम इंडिया की 'प्लेयर पॉवर' की जीत हुई। 

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- चरनपाल सिंह सोबती

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